 
  जैसा कि आप जानते हैं भारत एक विशाल देश है। यहाँ अलग-अलग क्षेत्रों में भाषा, संस्कृति और परम्परा में बहुत अधिक विविधता पाई जाती है। यहाँ की भौगोलिक स्थितियों में भी इतनी विविधता है कि समय-समय पर राज्यों का पुनर्गठन नए राज्यों का निर्माण होता है। इसी प्रक्रिया को क़ानूनी तौर पर मान्यता देने और नियंत्रण रखने के लिए भारतीय संविधान में अनुच्छेद 2 का प्रावधान किया गया है।
इस आर्टिकल का मुख्य उदेश्य यह स्पष्टता प्रदान करना है कि भारत की संसद के पास वह शक्ति होगी वह जरूरत पड़ने पर किसी बाहरी क्षेत्र को भारत का हिस्सा बना सकती है या फिर भारत के भीतर किसी नए राज्य की स्थापना कर सकती है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 2
अगर आप भारतीय संविधान में इसके अनुच्छेद दो को पढ़ते हैं, तो यह कुछ इस प्रकार लिखा हुआ है-
नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना- संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।
सरल शब्दों में समझें:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद दो, भारतीय संसद को यह अधिकार देता है कि वह किसी नए क्षेत्र अथवा राज्य को भारतीय संघ (Union of India) में शामिल कर सकता है। जरूरत पड़ने पर नए राज्य की स्थापना कर सकता है और यह सब कुछ संसद अपने अनुसार उचित शर्तों एवं परिस्थितियों के अनुसार कर सकता है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 2A:
भारतीय संविधान में पहले एक उप-अनुच्छेद 2A भी था। इस उप-अनुच्छेद में लिखा था-
"सिक्किम का संघ के साथ सहयुक्त किया जाना।"
लेकिन बाद में जब भारतीय संविधान में 36वां संशोधन किया गया (संविधान अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा), तो दिनांक 26 अप्रैल 1975 को सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ और यह उप-अनुच्छेद हटा दिया गया।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 का महत्व
हमें लगता है कि संविधान निर्माताओं ने बहुत अधिक दूरदर्शिता को ध्यान में रखते हुए, भारतीय संविधान में अनुच्छेद को शामिल किया है। अगर आप इस अनुच्छेद को ध्यान से अध्ययन करते हैं तो आपको इसमें तीन महत्वपूर्ण बातें देखने को मिलती हैं-
- भारत की अखंडता को बनाये - संविधान बनाते समय, संविधान निर्माताओं ने इस बात का ध्यान रखा कि यदि भविष्य में कोई नया क्षेत्र भारत से जुड़ना चाहेगा तो उस क्षेत्र को भारत में शामिल करने के लिए कोई समस्या न हो। इसलिए उन्होंने भारतीय संविधान में अनुच्छेद 2 के माध्यम से इसका प्रावधान किया।
- राजनैतिक और प्रशासनिक सुविधा - भारत एक विशाल देश है और देश को सुचारु रूप से चलाने के लिए संभव है कि देश को नए राज्य की आवश्यकता हो। तो अनुच्छेद 2 संसद को ऐसा करने की भी शक्ति प्रदान करता है।
- जन भावनाओं का सम्मान - संविधान निर्माताओं को यह आशंका रही होगी कि भविष्य में भाषाई, सांस्कृतिक अथवा क्षेत्रीयता के आधार पर लोग नए राज्य की मांग कर सकते हैं। इसलिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 2 जन भावनाओं का सम्मान रखने के लिए भी संसद को शक्ति प्रदान करता है।
अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 में अंतर
बहुत से लोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 से भ्रमित हो जाते हैं। आपके मन में ऐसा भ्रम पैदा न हो, इसलिए मैं यहीं पर अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 में अंतर को स्पष्ट कर देता हूँ।
- अनुच्छेद 2: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 2, नए क्षेत्रों को संघ में शामिल करने या पूरी तरह से नए राज्य की स्थापना करने के लिए बनाया गया अनुच्छेद है। उदाहरण- सिक्किम का भारत में शामिल किया जाना।
- अनुच्छेद 3: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3, भारत के भीतर मौजूद राज्यों की सीमाओं में बदलाव, किन्हीं राज्यों को अलग-अलग राज्यों में विभाजित करना या अलग-अलग राज्यों को एक राज्य बनाने के लिए बनाया गया अनुच्छेद है। उदाहरण- तेलंगाना का आंध्र प्रदेश से अलग होना।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 का उपयोग
आपको यह समझना होगा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद दो का उपयोग केवल तब किया जाता है जब भारत से बाहर के किसी क्षेत्र को भारत में शामिल किया जाता है या किसी ऐसे क्षेत्र को जो पूर्व में भारत के क्षेत्र नहीं था, लेकिन बाद में उस क्षेत्र को नए राज्य को रूप में स्थापित करके भारत का हिस्सा बनाया जाता है। आइये कुछ घटनाओं से समझते हैं, जब भारतीय संसद ने संविधान के इस अनुच्छेद का उपयोग किया है-
- सिक्किम: 1975 से पहले यह एक एसोसिएट स्टेट था। लेकिन बाद में, भारतीय संसद ने अनुच्छेद 2 का उपयोग करके सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बना दिया।
- फ्रांसीसी उपनिवेश: वर्ष 1954 से 1962 के बीच पांडिचेरी, करैकल, माहे और यानम पर फ्रांस का कब्जा था। वर्ष 1962 में हुए एक समझौते के बाद, इसे अनुच्छेद 2 का उपयोग करके भारतीय संघ में शामिल किया गया और आज यह पुडुचेरी नाम से भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश है।
- गोवा, दमन और दीव: वर्ष 1961 से पहले यह क्षेत्र पुर्तगालियों के अधीन हुआ करते थे। लेकिन वर्ष 1961 में भारत ने "ऑपरेशन विजय" के बाद इस क्षेत्र को अपने नियंत्रण में लिया और अनुच्छेद 2 का उपयोग करके इसको भारत में शामिल किया। बाद में, वर्ष 1987 में गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 की स्पष्ट व्याख्या
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 ने, केवल भारतीय संसद को किसी नए राज्य को भारत में शामिल करने या नए राज्य की स्थापना करने का अधिकार दिया हुआ है। यह कार्य साधारण क़ानूनी के जरिये भी किया जा सकता है लेकिन इसके लिए संसद की मंजूरी बेहद जरूरी है। लेकिन सामान्यतः संसद इस प्रक्रिया को राष्ट्रपति की सिफारिश पर आगे बढ़ाती है, ताकि निर्णय केवल राजनैतिक न रहते हुए संवैधानिक आधार पर भी मान्य बना रहे।
इसके अलावा, अनुच्छेद 2 की एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इसके लिए संविधान में संशोधन करने की जरूरत नहीं होती। संसद साधारण बहुत से कानून बनाकर किसी नए राज्य को भारत में शामिल कर सकता है या नया राज्य स्थापित कर सकता है। यही कारण है कि गोवा और पुडुचेरी जैसे क्षेत्रों को भारत में शामिल करने के लिए संविधान में कोई संशोधन नहीं किया गया, बल्कि केवल कानून पारित करके उन्हें भारतीय संघ में शामिल कर लिया गया।
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 2 क्यों जरूरी है
भारत एक विशाल एवं विविधताओं से भरा हुआ देश है। नई-नई परिस्थितियों में नए क्षेत्रों को शामिल करने एवं राज्यों का पुनर्गठन करने की जरूरत कभी भी पड़ सकती है। अब विचार करके देखिये, यदि संविधान में अनुच्छेद 2 जैसा प्रावधान न होता, तो ऐसे बदलाव करना कितना मुश्किल हो जाता।
🎥 वीडियो: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 2 सरल भाषा में
यदि आप इस विषय को पढ़ने के साथ-साथ वीडियो के माध्यम से भी समझना चाहते हैं, तो नीचे दी गई हमारी YouTube वीडियो ज़रूर देखें। इसमें अनुच्छेद 2: नए राज्यों का प्रवेश और स्थापना को आसान और स्पष्ट उदाहरणों के साथ समझाया गया है।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 2 यह दर्शाता है कि हमारा संविधान कितना लचीला और दूरदर्शी है। यह न केवल भारत की एकता को सुनिश्चित करता है बल्कि बदलते समय और परिस्थितियों के अनुसार नए राज्यों को जोड़ने का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि भारत एक जीवंत और सशक्त लोकतंत्र के बन पाया है।
 
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