 
  भारत के बहुत ही विशाल और विविधताओं से भरा हुआ देश है। यहाँ पर विभिन्न भाषायें, संस्कृति और परम्पराएं मिलकर विविधता में एकता का एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करतीं हैं। भारत के इतने बड़े भौगोलिक क्षेत्र और विविधताओं से भरे हुए समाज को प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए समय-समय पर राज्यों की सीमाओं, नाम और संरचना में बदलाव की जरूरत पड़ती रहती है। इस कार्य को करने की शक्ति और दिशानिर्देश भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 करता है।
अनुच्छेद 3, संसद को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के गठन, विभाजन, विलय, नाम परिवर्तन और सीमाओं में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है। यह प्रावधान न केवल भारतीय संघीय संरचना को लचीलापन देता है बल्कि राजनैतिक, सामाजिक और प्रशासनिक जरूरतों के अनुरूप राज्यों के पुनर्गठन को भी संभव बनाता है।
तो दोस्तों, Digital PadhaiLikhai के आज के इस लेख में हम, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे। सबसे पहले हम जानेंगे कि संविधान में इस आर्टिकल को कैसे लिखा गया है, फिर सरल शब्दों में एवं कुछ उदाहरण की मदद से इसको समझने का प्रयास करेंगे।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 (मूल पाठ)
नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन- संसद, विधि द्वारा-
- किसी राज्य क्षेत्र में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या दो से अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी।
- किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;
- किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी;
- किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी;
[परन्तु इस प्रयोजन के लिए कोई विधयेक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना और जहां विधेयक में अंतर्विष्ट प्रस्थापना का प्रभाव राज्यों में से किसी के क्षेत्र, सीमाओं या नाम पर पड़ता है वहां जब तक उस राज्य के विधान मंडल-द्वारा उस पर अपने विचार, ऐसी अवधि के भीतर जो निर्देश में विनिर्दिष्ट की जाये या ऐसी अतिरिक्त अवधि के भीतर जो राष्ट्रपति द्वारा अनुज्ञात की जाए, प्रकट किये जाने के लिए वह विधेयक राष्ट्रपति द्वारा उसे निर्देशित नहीं कर दिया गया है और इस प्रकार विनिर्दिष्ट या अनुज्ञात अवधि समाप्त नहीं हो गई है, संसद के किसी सदन में पुरःस्थापित नहीं किया जायेगा।]
[स्पष्टीकरण 1- इस अनुच्छेद के खंड (क) से खंड (ङ) में, "राज्य" के अंतर्गत संघ राज्य क्षेत्र हैं, किन्तु परन्तुक में "राज्य" के अंतर्गत संघ राज्यक्षेत्र नहीं हैं।
स्पष्टीकरण 2- खंड (क) द्वारा संसद को प्रदत शक्ति के अंतर्गत किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के किसी भाग को किसी अन्य राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के साथ मिलाकर नए राज्य या संघ राज्यक्षेत्र का निर्माण करना है।]
अनुच्छेद 3 क्या कहता है? (सरल भाषा में)
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 संसद को यह अधिकार देता है वह संसद में कानून बनाकर निम्नलिखित कार्य कर सकती है।
- नया राज्य बना सकती है: अनुच्छेद 3 संसद को यह अधिकार देता है कि वह कानून बनाकर किसी राज्य के हिस्से को अलग करके या दो या दो से अधिक राज्यों को मिलाकर या किसी इलाके को किसी राज्य से जोड़कर नया राज्य बना सकती है।
- किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकती है: अर्थात अनुच्छेद 3 से संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि वह इसी राज्य में कोई नया इलाका जोड़ सकती है।
- किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकती है: अर्थात अनुच्छेद 3 संसद को यह अधिकार देता है कि वह कानून बनाकर, किसी राज्य से उसका कोई इलाका अलग कर सकती है।
- किसी राज्य की सीमाएँ बदल सकती है: अर्थात अनुच्छेद 3 से संसद को यह शक्ति प्राप्त है, जिसका उपयोग करके वह किसी राज्य के बॉर्डर में बदलाव कर सकती है।
- किसी राज्य का नाम बदल सकती है
प्रक्रिया: नया राज्य या सीमा परिवर्तन कैसे होता है?
अब आपके मन में यह सवाल पैदा हो सकता है कि आखिर नया राज्य कैसे बनता है या किसी राज्य की सीमाएं कैसे बदली जाती हैं? तो इसका जवाब है- यह काम संसद ही कर सकती है। लेकिन संसद इस कार्य को एकदम से नहीं कर सकती है, इसके लिए संविधान में ठोस प्रक्रिया तय की है।
सबसे पहले, यदि किसी राज्य के बटवारे, सीमा परिवर्तन अथवा नाम बदलने के लिए कोई प्रस्ताव आता है तो यह राष्ट्रपति के पास जाता है। राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद इस विषय पर कोई बिल भी पेश नहीं कर सकती है। यानि की इस प्रक्रिया की पहली सीढ़ी राष्ट्रपति होता है।
अब इसके बाद, यदि ऐसे किसी प्रस्ताव के कारण किसी राज्य की सीमाएं, उसका भौगोलिक क्षेत्र अथवा नाम प्रभावित होने वाला होता है, तो राष्ट्रपति उस राज्य विधान सभा से राय मांगते हैं। यह जरूरी तो है, लेकिन यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए उस राज्य की सहमति होना अनिवार्य नहीं होता है। विधानसभा अपनी राय रख सकती है, लेकिन अंतिम निर्णय उनके हाथ में नहीं होता है।
अंत में, जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है और निर्धारित समय सीमा समाप्त हो जाती है, तो इसके बाद, इस संदर्भ में संसद में बिल पेश किया जाता है। संसद पर ही निर्णय निर्भर करता है - अगर संसद चाहे तो नया राज्य बना सकती है, राज्य के सीमाओं में बदलाव कर सकती है या फिर किसी राज्य का नाम बदल सकती है।
सीधे शब्दों में कहें तो-
- इस प्रक्रिया की शुरुआत राष्ट्रपति के सिफारिश से होती है
- सम्बंधित राज्य के विधानसभा से राय ली जाती है
- अंतिम निर्णय संसद लेती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 की खास बातें
अगर सरल शब्दों में कहें तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 एक ऐसा प्रावधान है, जो संसद को यह ताकत देता है कि वह देश को समय की जरूरत के हिसाब से ढाल सकती है। आइये इसे कुछ आसान उदाहरण से समझते हैं-
इस अनुच्छेद की सबसे पहली और बड़ी खास बात यह है कि इसका उपयोग करके राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों दोनों के साथ बदलाव किये जा सकते हैं। कहने का अर्थ यह है कि चाहे किसी राज्य की बात हो अथवा दिल्ली, पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेश की, संसद के पास यह अधिकार होता है कि जरूरत पड़ने पर वह इस अनुच्छेद का उपयोग करके इन्हें जोड़ अथवा घटा सकता है।
इस अनुच्छेद की दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अनुच्छेद बहुत ही लचीला है। मान लीजिये कि किसी राज्य का प्रशासन संभालना मुश्किल हो रहा है, तो उसका एक हिस्सा अलग करके नया राज्य बनाया जा सकता है। ठीक इसी तरह से, अगर किसी छोटे क्षेत्र को किसी बड़े राज्य में मिलाने से प्रशासन व्यवस्था में सुधार हो सकता है, तो इसका उपयोग करके यह कार्य भी किया जा सकता है।
इस अनुच्छेद की तीसरी दिलचस्प बात यह है कि इस कार्य को पूर्ण करने के लिए सम्बंधित राज्य के विधानसभा की राय लेना तो अनिवार्य होता है, लेकिन यदि विधानसभा की राय इसके खिलाफ होती है, तब भी अगर संसद चाहे तो इस कार्य को पूर्ण कर सकती है। यानि अंतिम फैसला हमेशा संसद का ही होता है।
इसके अतिरिक्त इस अनुच्छेद का सबसे बढ़िया पहलू यह भी है कि इसका उपयोग करके संसद किसी राज्य के नाम को भी बदल सकती है। आपने देखा होगा कि मद्रास का नाम बदलकर तमिलनाडु रख दिया गया, उड़ीसा को बदलकर ओडिशा कहा जाने लगा या फिर उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। यह सभी कार्य इसी अनुच्छेद का उपयोग करके किया गया।
संक्षेप में कहें तो यह अनुच्छेद हमारे संविधान का एक ऐसा लचीला प्रावधान है जिसकी मदद से भारत अपनी प्रशासनिक जरूरतों और लोगों की आकांक्षाओं के हिसाब से खुद को ढालने की अनुमति देता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 का महत्व
अब जरा एक बार विचार करके देखिये, यदि भारत जैसे बड़े और विविधताओं से भरे हुए देश में राज्यों की सीमाएं और नाम कभी बदले ही ना जा सकें, तो क्या होगा? ऐसे देश में समय के साथ लोगों की जनसंख्या में बदलाव होता है और जरूरतें बदलती हैं, जिसके कारण प्रशासनिक चुनौतियाँ सामने आती हैं तो कभी-कभी लोगों के उनके सांस्कृतिक पहचान के लिए सम्मान देने की जरूरत होती है। इन चीज़ों के लिए, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 किसी एडजेस्टमेंट मशीन की तरह काम करता है और देश को उसके बदलते हुए हालात के मुताबिक बदलने की ताकत देता है।
इस अनुच्छेद की सबसे बड़ी विशेषता ही यही है कि यह राष्ट्रीय एकता को बरकरार रखते हुए क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने का मार्ग प्रतस्थ करता है। मान लीजिये, किसी इलाके के लोग एक लम्बे समय से नया राज्य बनाने की मांग कर रहे हैं, जैसे तेलंगाना के लोग कर रहे थे। अगर भारतीय संविधान में अनुच्छेद 3 जैसी व्यवस्था नहीं होती, तो शायद लोगों की यह मांग कभी पूरी नहीं हो पाती और वहां के लोगों में असंतोष की भावना बढ़ती जाती।
इसके अलावा, यह अनुच्छेद प्रशासनिक व्यवस्थाओं को भी आसान बनाता है। बड़े राज्यों को बांटकर छोटे-छोटे राज्यों का निर्माण करने से सरकार की जन हितकारी योजनाएं लोगों तक आसानी से पहुंच पाती है। छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड जैसे राज्यों को उदाहरण के रूप में देखिये- अगर इनका निर्माण न हुआ होता तो शायद इन क्षेत्रों की समस्याएं इतनी आसानी से नहीं सुलझ पातीं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 हमारे संघीय ढांचे को अधिक लचीला बनाता है। अमेरिका और अन्य कई देशों की तरह भारत का संघ कठोर नहीं है। यहाँ जरूरत पड़ने पर हमारी संसद राज्यों की सीमाओं और संरचना में आसानी से बदलाव कर सकती है। यही वजह है कि भारत एक ही समय में "एक मजबूत संघ" भी है और "लचीला संघ" भी है।
संक्षेप में कहें तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद तीन का यही महत्व है कि यह भारत को जीवंत और गतिशील बनाये रखता है- जहाँ बदलती जरूरतों के अनुसार राज्यों का गठन, सीमाओं में बदलाव और नामकरण किया जा सकता है।
अनुच्छेद 3 से जुड़े महत्वपूर्ण उदाहरण
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 सिर्फ किताबी प्रावधान नहीं है, बल्कि इसका असर हमारे देश के नक़्शे पर दिखाई भी देता है। अगर यकीन न हो, तो आइये इसे कुछ जीवंत उदाहरण से समझ लेते हैं, जब इस अनुच्छेद का उपयोग करके भारत को नया आकर दिया गया।
सबसे पहले हम इतिहास के पन्नों को खोलते हैं और 1960 के दौर में चलते हैं। यह वह समय था, जब भाषा के आधार पर बॉम्बे को तोड़कर दो नए राज्यों का अस्तित्व बना- महाराष्ट्र और गुजरात। आज यह दोनों ही राज्य अपनी अलग पहचान रखते हैं और इसके साथ ही अपने विकास के कहानियों के लिए जाने जाते हैं। महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों का निर्माण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 की ही देन है।
अब जब आप समय के पन्नों को एक बार फिर से पलटते हैं, तो आपको साल 2000 में बड़े बदलावों का दौर मिलता है। यह वह समय था जब तीन नए राज्य बनाये गए- छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखण्ड। छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से, उत्तराखंड उत्तर-प्रदेश से और झारखण्ड बिहार से अलग हुआ। हालाँकि यहाँ पर आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि जब उत्तराखंड अस्तित्व में आया तब उसका नाम उत्तरांचल था। अब एक बार सोचकर देखिये, उस समय अगर यह राज्य नहीं बने होते, तो क्या इन इलाकों की स्थानीय जरूरतें, पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्रों की विशेष समस्याओं का समाधान क्या इतनी आसानी से हो पाता, शायद नहीं।
अब अगर आप तेलंगाना राज्य के गठन की कहानी को ध्यान देते हैं, तो यह भी अनुच्छेद 3 का सबसे बड़ा उदाहरण है। वर्ष 2014 में, आंध्रप्रदेश से अलग होकर तेलंगाना राज्य अस्तित्व में आया। यह सिर्फ किसी क़ानूनी प्रक्रिया का नतीजा नहीं था, बल्कि दशकों से चले आ रहे जनांदोलन का परिणाम था। संसद ने जब "आंध्रप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014" पास किया, तब जाकर भारत को उसका 29वां राज्य मिला। 2014 की यह घटना प्रमाणित करती है कि अनुच्छेद 3 जन भावनाओं को सुनने और उन्हें संवैधानिक स्वरूप देने का भी जरिया है।
हाँ, अगर हालिया घटनाओं को देखें तो मुझे यकीन है कि आप जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन को नहीं भूलें होंगे। वर्ष 2019 में, संविधान के इसी अनुच्छेद का उपयोग करके संसद ने जम्मू-कश्मीर को राज्य से हटाकर दो अलग केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बाँट दिया। संसद का यह कदम दिखाता है कि अनुच्छेद 3 का उपयोग करके सिर्फ राज्य ही नहीं बनाया जा सकता, बल्कि केंद्र शासित प्रदेशों में भी बदला जा सकता है।
तो अब आपने भी यह समझ लिया होगा कि संसद ने अनुच्छेद 3 का उपयोग करके भारत का नक्शा कई बार बदला है। चाहे तेलंगाना की लड़ाई हो या झारखण्ड के आदिवासी इलाकों की मांग हो या जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन, हर बार अनुच्छेद 3 की मदद से संसद ने लोगों की उम्मीदों और प्रशासनिक जरूरतों को पूरा करने का कार्य किया है।
🎥 वीडियो: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 सरल भाषा में
यदि आप इस विषय को पढ़ने के साथ-साथ वीडियो के माध्यम से भी समझना चाहते हैं, तो नीचे दी गई हमारी YouTube वीडियो ज़रूर देखें। इसमें अनुच्छेद 3: राज्यों के पुनर्गठन और सीमा परिवर्तन की व्यवस्था को आसान और स्पष्ट उदाहरणों के साथ समझाया गया है।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3, भारत की संघीय संरचना को मजबूती प्रदान करने वाला अहम प्रावधान है, जिसका उपयोग करके संसद राज्यों की सीमाओं, नाम और क्षेत्र में बदलाव कर सकती है। भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद, देश को एक लचीला और व्यावहारिक संघ बनाता है, जहां स्थानीय आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत किया जाता है।
तेलंगाना, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड जैसे राज्यों का गठन इस बात को प्रमाणित करते हैं कि अनुच्छेद 3, समय और जरूरत के अनुसार भारत की राजनैतिक और प्रशासनिक संरचना को नया रूप देने में सक्षम है।
 
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